इंटरनेट ही जिनगी बन गईल
इंटरनेट ही जिनगी बन गईल
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फागुन के रात इंटरनेट में कट गईल
चाँद ऑनलाइन, कभी ऑफलाइन हो गईल
ईमेल चेक करत-करत भोर हो गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी हो गईल
रिश्ता-नाता से बातचीत छूट गईल
ई-कार्ड से पर्व-त्यौहार मन गईल
फ़ोन कम चैटिंग ज्यादा हो गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी हो गईल
कलम-स्याही से लिखल कम हो गईल
कंप्यूटर कोर्स गाँव में शुरू हो गईल
पंचांग-पंडित भी ऑनलाइन हो गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी हो गईल
शादी-बियाह-लगन कंप्यूटर से हो गईल
लड़का-लड़की मिलन वेबकैम से हो गईल
नौकरी जॉब पोर्टल से पक्का हो गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी हो गईल
मुख्य समाचार वेबसाइट से मिल गईल
दूर-भाष ब्रॉडबैंड कनेक्शन से मिल गईल
बिजली के बिल भी ऑनलाइन हो गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी हो गईल
पिक्चर के गाना एम्.पी.थ्री म्यूजिक बन गईल
आई-फ़ोन, आई-पॉड के भी सुविधा मिल गईल
युट्यूब पर रातों-रात केहू हीरो बन गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी बन गईल
गूगल-ब्लॉग-ऑरकुट से मन के तार जुड़ गईल
मईल-नीमन सब कुछ इंटरनेट पर मिल गईल
इतिहास पर ना, वेबसाइट पर बिस्वास जम गईल
इंटरनेट ही सभके जिनगी बन गईल
कलियुग के दोहे
कलियुग के दोहे---------------------------------------
(1) नौकरी अइसन पकडीं, काम ना मिले रोज़
कंपनी चले भा डूबे, मिले पैसा, पेंसन, मौज
(2) बबुआ, फ्रेशर हव तs का भइल, चिंता जिन करs बेकार
दिनवा में सुतल करs, रतिया बा कॉल सेन्टर तैयार
(3) आपन काम अपने करीं, दूसरा पर ताकत रही जायिब
नौकर बड़का मालिक लगे, नौकरानी से ठेंगा पायिब
(4) सच मिले भा न मिले, जवन चाहीं कर दीं साँच
झूठा झूठे झूठ कहे, ना पकड़ पायिब तीन-पाँच
(5) चिट्ठी लिखे के समय ना, ईमेल से मिले सब पतरा
पैसा के जगह क्रेडिट-कार्ड बा, मोबाइल से बने जतरा
(6) सतुआ-लिट्टी-चोखा, खाए के ना मिली बबुआ
पिज्जा-पेप्सी से पेट भरबा, याद आवत रही हलुआ
(7) मेहरारू-मरद झगडत रहिल, लड़ाई से हो घरे में हल्ला
उमिरिया बीतत गइल, बियाह के मतलबे न परल पल्ला
(8) स्टाइल के ज़माना आईल, माँग में टिकुली भर सेनुर भराइल
घरवा में रिश्ता आईल, बेटी से पहिले बियाह्वल मेहरारू चुनायिल
(9) कलियुग में फायदा चाहीं, त बन जा ग्वाला-दूधवाला
दूध बेंचs भा पानी, समय बिन देखे ना घरवाला
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